नागपत्री एक रहस्य-2

घुड़सवारी का आनंद और पहली दफा किसी घोड़े के द्वारा अपनी सवारी हेतु स्वीकार करना, लक्षणा के लिए किसी विशेष आनंद से कम नहीं था, वह मंदिर के पास के मैदान में घोड़ों को सरपट दौड़ाये जा रही थी।

               पर थोड़े समय के लिए यह समझ नहीं आया कि लक्षणा की मर्जी से घोड़ा चल रहा है, या घोड़े की मर्जी से लक्षणा विचरण कर रही है, क्योंकि थोड़े ही समय में घोड़े ने तेज रफ्तार पकड़ ली ।



लक्षणा के लिए कुछ भी समझ पाना असंभव हो गया, उसे सिर्फ और सिर्फ तेज प्रकाश की किरण नजर आ रही थी, वह सोच में डूब गई कि आखिर यह कोई साधारण घोड़ा तो हो नहीं सकता।
           वह याद करने लगी कि तेज हवाओं के साथ मंदिर के घंटे ने आवाज की, तब पुजारी सजग हो, अपने स्थान पर खड़े होकर वह मां मनसा देवी के सामने माथा टेक आगे बढ़ा, और लक्षणा ने जैसे ही मंदिर में पैर रखा, सारा तूफान अचानक थम सा गया।



मंदिर के पुजारी आचार्य चित्रसेन जी जिनके बारे में सिर्फ अब तक दिनकर जी ने लोगों से सुना था, उनके तेज को देखकर उन सबसे कहीं ज्यादा पाया। 
              आचार्य चित्रसेन जी से वे अपने मन की बात कह पाते, उससे पहले उन्होंने "कदंभ" का नाम उच्च स्वर में पुकारा, और देखते ही देखते सफेद रंग का घोड़ा मंदिर के पीछे से दौड़ लगाते हुए प्रकट हुआ , जैसे वह सिर्फ और सिर्फ इसी बात का इंतजार कर रहा था।



इतना सुंदर घोड़ा आज तक उन्होंने कभी नहीं देखा था, आचार्य चित्रसेन जी ने दिनकर जी को बैठने के लिए आसन दिया, और मां मनसा देवी का प्रसाद गृहण कर, लक्षणा से कहा कि वह कदंभ का तिलक करें, और लक्षणा ने ठीक वैसे ही किया। 
              तिलक के पश्चात कदंभ जिसकी ऊंचाई सोच से कहीं ज्यादा परे थी, वह अपने स्थान पर बैठ गया, जिसका आशय यह था कि उसने लक्षणा को सैर कराने की अनुमति प्रदान कर दिया। 



तब आचार्य चित्रसेन जी ने उस घोड़े से कहा, मां मनसा देवी की आज्ञा अनुसार कदंभ तुम्हें उनकी सेविका लक्षणा को अपनी सवारी हेतु स्वीकृति प्रदान कर विचरण करवाने की मैं प्रार्थना करता हूं। 
           बस इतना ही सुना था, कि वह अपने स्थान पर खड़ा हुआ, और थोड़ी धीरे-धीरे गति पकड़ने लगा, जिससे लक्षणा ने शुरु शुरु में आनंद लिया, लेकिन फिर इतनी तेज गति में उसे सिर्फ और सिर्फ चारों ओर प्रकाश की नजर आने लगा।



लक्षणा को अचानक एक झटके के साथ ऐसा लगा, जैसे घोड़े ने संपूर्ण धरती को नाप लिया हो, 
पहाड़, पर्वत, झरने सब कुछ पार करता हुआ, वह अब समुद्र की लहरों पर दौड़ लगा रहा था, यह भी एक अलग ही आनंद की अनुभूति थी,
                क्योंकि ऐसा तो लक्षणा ने कभी सोचा ही नहीं था, उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई स्वप्न देख रही हैं। 



अब उसके मन में कोई शंका और कोई भी प्रश्न नहीं थे,  वह तो सिर्फ और सिर्फ घोड़े की मर्जी के अनुसार विचरण कर रही थी, अगले ही पल समुद्र की सीमाओं को पार कर वह जैसे ब्रह्मांड की ऊंचाइयों पर आ गया, जहां से पृथ्वी को शून्य की भांति स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है, 
                    चांद, तारे, आकाशगंगा सब कुछ ऐसा लग रहा था, जैसे लक्षणा सपना देख रही है, इतनी तेज रफ्तार में वह घोड़ा उसे ले, सारे ब्रह्मांड का चक्कर लगाते हुए अचानक ज्वालामुखी लावा को पार करता हुआ, पाताल लोक की गहराई में चला गया, जहां कुछ समय के लिए घोर अंधकार सा दिखा, 



लेकिन फिर अचानक नाग और सर्पों की दुनिया दिखाई देने लगी, अनेकों इच्छाधारी नाग नागिन बड़े-बड़े महल सबके सिर नागमणी किसी मुकुट की तरह सुशोभित सब कुछ किसी स्वप्न की तरह, और देखते ही देखते वह घोड़ा उछाल के साथ पुनः समुद्र की लहरों पर लौट आया, और धीरे-धीरे मैदान की ओर दौड़ लगाकर अपनी गति को कम कर मंदिर प्रांगण में खड़ा हुआ ।
                 लक्षणा को ऐसा लगा जैसे वह स्वप्न से जागी हो, और सामने मंदिर के उसे जागने का एहसास हुआ, उसने कुछ ही पलों में ऐसे ऐसे अनुभव किए थे, कि जिसे समझ पाना और बता पाना सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं था। 



             उसने आचार्य चित्रसेन जी को प्रणाम की मुद्रा में धन्यवाद कहा, और घोड़े के सिर पर हाथ फेरते हुए अपनी कृतज्ञता दिखाई, और मंदिर में आकर पुनः मां मनसा देवी को अंतर्मन से धन्यवाद किया, और अपने जन्म के रहस्य को जानने की इच्छा प्रकट की ।
                   ऐसा लगा जैसे उसकी इस यात्रा से जैसे उसकी आत्मा के द्वार खोल दिए गए हैं, वह अपने आप को संसार के सभी रहस्यों को कुछ पल के लिए देख पाने में सक्षम महसूस कर रही थी। 



उसे वहां खड़े-खड़े उसके घर में हो रही गतिविधियों के बारे में ऐसे नजर आ रहा था, जैसे एक ही समय में दो अलग-अलग जगहों पर देख पाने में सक्षम है, लेकिन वह यह बात किसी से बता नहीं सकती, उसने पलट कर देखा।
                तब तक वह घोड़ा अपने स्थान से जा चुका था, और उसके पिता दिनकर जी उसे देख मुस्कुरा रहे थे, और जैसे वह भी अपनी बेटी की घुड़सवारी को देख कर आनंदित थे, उन्होंने सम्मान से आचार्य चित्रसेन जी को आभार प्रकट किया, और अपनी पुत्री के विषय में कुछ जानने की इच्छा प्रकट की।



जिसके जवाब में आचार्य चित्रसेन जी ने सिर्फ इतना ही कहा, कि कुछ रहस्य यदि धीरे-धीरे ही जाने जाए तभी अच्छा होगा, वक्त आने पर आपको खुद ही पता चल जाएगा, बस इतना कहूंगा कि आपकी बेटी कोई साधारण नहीं। 
                  लक्षणा नाग माता का आशीर्वाद है, क्योंकि जब आपकी पत्नी ने एक लंबे समय तक इंतजार के पश्चात संतान उत्पत्ति की इच्छा से अपनी कुलदेवी माता के मंदिर में पूजा अर्चना की, और पूजन के पश्चात जब उन्हें जलामृत प्रदान किया गया, तब उन्होंने जानबूझकर मां की चुनरी पर एक कोना उस जल को छूते हुए यह कहा ,कि मां आपकी चुनरी के स्पर्श मात्र से एक संपूर्ण ब्रह्मांड रचा जा सकता है।



तब भला एक संतान की इच्छा क्या मायने रखती है, यह कहते हुए उन्होंने वह प्रसाद गृहण किया, और तत्पश्चात आपकी इस पुत्री का जन्म हुआ था, 
                   यह बिल्कुल हूबहू उन कुलदेवी की प्रतिरुप ही है, जिसका स्वरूप, शक्ति और आभामंडल आपकी पत्नी ने वरदान में मांगा था। 


इसकी नीली आंखें उस आदिशक्ति के ब्रह्मांड के स्वरूप को इंगित करती है, जो सब कुछ देख पाने में सक्षम है, खैर जो भी हो, आप अपनी बेटी को लेकर चिंतित ना हो, आपकी सारी शंकाओं का समाधान समय के साथ होते चला जाएगा। 
                     बस आपसे यही कहूंगा, पुत्री के विवाह से पहले एक बार अपने ससुराल में पत्नी के साथ उनकी कुल देवी का दर्शन जरुर कर आये, शायद आपको अपने प्रश्नों के कुछ जवाब मिल जाएंगे, यह कहते हुए उन्होंने उन दोनों को विदा किया। 
आखिर कौन से जवाब की बात आचार्य चित्रसेन जी कर रहे थे????? 


क्रमशः.....

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 01:51 PM

Nice

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